गांधी : एक नेता |
म्युरियल लेस्टर म्युरियल लेस्टर, दूसरे गोलमेज परिषद के लिए इंग्लैंड के दौरे पर गए महात्मा गांधी की मेजबान थी। ये शांति के लिए झुंझारू लड़ाका के रूप में प्रसिद्ध हुई। इन्होंने 'फेलोशिप ऑफ रिकान्सीलेशन` के अंतर्राष्ट्रीय संगठन सचिव के रूप में कई वर्षों तक कार्य किया। इन्होंने इस लेख में गांधीजी के साथ हुई अपनी पहली मुलाकात का वर्णन किया है। इस लेख में लेखिका ने बताया है कि वह गांधी में और उनकी नीतियों में क्यों विश्वास करती थी। इन्होंने गांधी के महानतम गुणों, उनकी सरलता, उनकी विनादप्रियता और उनकी इमानदारी पर ज़ोर दिया है। किंग्सले हॉल के सामुदायिक केंद्र में रहते हुए सबसे गरीब, सबसे निचले व विस्मृत लोगों के साथ आत्मपरिक्षण का अभ्यास करने के कारण इन्हें आश्रम की यात्रा में कोई आश्चर्य नहीं हुआ। इनके अनुसार, यह गांधी का ही चमत्कार था कि विश्वभर के नेताओं ने उनके अहिंसा का प्रयोग किया। सरल साधारण जनता तो अब भी उनके नियमों का पालन करती है। 1926 में, मैं पहली बार भारत गई। मेरे जाने का प्रमुख उद्देश्य गांधी को देखना था। लंदन में, पहले विश्वयुद्ध के बाद ही हम इस नए भारतीय नेता के बारे में सुन पाए थे। हममें से कुछ ने रोमेन रोनाल्ड की आत्मकथा तथा 'यंग इंडिया` के एक वर्ष के अंकों के मोटे संकलन के जरिए उनके आंदोलन के बारे में जानकारी प्राप्त की थी। आश्रम में महिने भर का पड़ाव मेरे लिए बिना किसी आश्चर्य के संतोषजनक रहा। मैं लंदन के ईस्ट एंड के सामुदायिक जीवन से परिचित थी। किंग्सले हॉल में सबसे गरीब, सबसे निचले व विस्मृतों के साथ आत्मपरिक्षण का अभ्यास होता था। मैं उन सारे युरोपियनों व अमेरिकीयों में से थी जो अहिंसा को ईसाई अभ्यास का ऐ अभिन्न अंग मानते थे। इसी के परिणामस्वरूप हम जैसे हजारों को जेल के अंदर-बाहर होना पड़ा था, पुलिस की अभद्रता-बर्बरतापूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ा था। तब आश्रम में ऐसी कौन-सी विलक्षण बात थी? एक बात पहचानी वह यह की कुछ तीस वर्षों के ऐतिहासिक युग में स्थान, समय और मानव भाग्य के एक साथ एकत्रित होने से यह ज्वलंत केंद्र बन गया था। इसके परिणामस्वरूप हमारी इस पुरानी गरीब धरती का पुनर्जन्म हुआ है और आत्मविनाश से बचने के लिए दुसरा अवसर मिला गया है। साथ ही हमें ईश्वर को इस नेता के नमक के विनोद पर धन्यवाद देना चाहिए जो इनके पास सदैव रहता है, सुबह के 3.30 बजे भी। भारत छोड़ने से पहले पूर्व मैं गुवाहाटी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस गई। कोलकता में मैं बापूजी के साथ थी। यहां उन्होंने मुझे सत्य के पालन की शुरूआत करने को कहा। "म्युरिएल, जब तुम अपने घर पहुंचोगी तब तुममें भारत के ब्रिटिश प्रशासन के विरूद्ध आलोचना में कुछ शब्द कहने की इच्छा होगी। भारत छोड़ने से पूर्व तुम्हें वाइसराय को जरूर फोन करना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि तुमने क्या गलत पाया। तुम्हें उन्हें अपनी आलोचना को गलत साबित करने का मौका ज़रूर देना चाहिए। यह बिल्कुल भी ठिक बात नहीं होगी कि तुम इस प्रांत के गवर्नर को बिना फोन किए चली जाओ उन्हें बताओ भी नहीं कि इंग्लैंड में तुम क्या रिपोर्ट देनेवाली हो।" मैं कौन थी। पूर्व लंदन मैं रहनेवाली कुछ भी नहीं। यह मेरे लिए सच में थर्रा देनेवाला काम था। सीढ़ीयों पर चढ़कर जाऊं और सभ्य व तड़फदार वर्दीयों में खड़े नौकरों से कहूं कि मैं लार्ड इर्विन से बात करना चाहती हूं ? पर गांधी ने मेरी भावनाओं की पूरी तरह अनदेखी की वे अपने स्वाभाविक, असंबंधित, गैर-भावनात्मक वस्तुनिष्ठ स्वर में मुझे निर्देश दिए जा रहे थे। "लंदन पहुंचते ही तुम सीधे इंडिया आफिस जाना और उन्हें कहना कि तुम क्या कर रही हो।" यहां मैंने उग्रता से उनका विरोध किया। पर गांधी पर इसका कोई असर नहीं हुआ। "वहां जाना तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है।" उन्होंने कहना जारी रखा। "इनमें से कुछ व्यक्ति शायद तुम्हारी मदद करेंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते है तो उनके असहयोग को तुम अपनी ताकत ज़रूर बनाना" ठीक उसी तरह हुआ जैसा उन्होंने अनुमान लगाया था और मैंने सच में उनमें से कुछ की बहुत बड़ी सहायता कर पायी। उनमें से 'एक मेरा आजीवन` मित्र बन गया, दूसरा किंग्सले हॉल के लिए लाभदायक बना। तीन वर्ष बाद 1931 में गोलमेज परिषद आयोजित हुई। इस दौरान दस सप्ताह के लिए ईस्ट एंड में गांधी हमारे मेहमान रहे, मैं भारत चली गई। महान अस्पृश्यता निवारण यात्रा में और बिहार भूकंप क्षेत्र यात्रा में मैं उनके साथ थी। हम रात में यात्रा करते और दिनभर खत्म न होनेवाली सभाआकं में सहभागी होते थे। वे सैकड़ों लोगों को अपने हस्ताक्षर देते थे। कभी कभी वे हस्ताक्षर के नीचे 'सत्य ईश्वर है` संदेश लिखा करते थे। एक बार अचानक मुड़कर उन्होंने मुझसे कहा, "म्युरियल, मैं जानता हूं कि बायबल में इस संदेश का दूसरी तरह कहा गया है। उसमें कहा गया है, 'ईश्वर सत्य है।` दोनों संदेशों का एक ही अर्थ है। मैंने सिर्फ वाक्य के शब्दों को उलट दिया है। ऐसा करके मैं लोगों को सोचने पर विवश करता हूं कि दोनों वाक्यों का क्या अर्थ है।" अंिहंसा, सत्य, चोरी न करना, सतत प्रार्थना करनेवाला, अनुशासन इस सभी गुणों से मिल बना था यह सरल, साधारण, निःस्वार्थी, विनोदप्रिय ईश्वर का आदमी। उन्होंने कभी भी सामान्य जनता से संपर्क नहीं तोड़ा। कभी भी लंबे शब्दों या गूढ़ संज्ञाओं का प्रयोग नहीं किया। ऐसा कुछ भी नहीं था जिसका अर्थ उन्हें पता न हो, उन्होंने ऐसे किसी भी नियम को प्रचारित नहीं किया जिसका उन्होंने खुद अभ्यास नहीं किया हो। इस व्यक्ति के कारण ब्रिटेन 40 भारतीयों को अपनी निजी वस्तु समझने की झूठी गलतफहमी से मुक्त हुआ। पश्चिमी अहिंसक आंदोलनों को इसी व्यक्ति से नया साहस व आत्मविश्वास मिला जिसकी वज़ह से दर्जन भर देशों के नम्र सदस्य दोनों विश्व युद्धों में सीना ताने ड़टे रहे। भले ही मृत्यु को क्यों न गले लगाना पड़ा। भारतीय क्षेत्रों में रहें सैंकड़ों-हजारों के बीच एक गांधी प्रशिक्षित ग्रामीण कार्यकर्ता बेहतर जीवन जी रहा है और अपने समर्थकों को प्रोत्साहित कर रहा है। 'गांधी की वापसी' की कोई आवश्यकता नहीं है। पूरे विश्व में ईश्वर आत्मा सबसे नम्र व सबसे साधारण होने के साथ ही सबसे महान के रूप में भी कार्य कर रही है। |