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गांधीजी का राजनैतिक दर्शनशास्त्र

आर. के. दासगुप्ता

प्रस्तावना : वर्तमान में विश्व हिंसा के दुष्परिणाम को झेल रहा है। वे देश जिन्होंने किसी समय हिंसा और आतंक का सामना किया है, अब वे घृणा की निरर्थकता को जान गए है। यह लेख 8 फरवरी 2004 को कोलकाता के सण्डे स्टेट्समैन में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि शांति व सौहार्दपूर्ण समाज की निर्मिती के लिए पूरे विश्व ने अहिंसा के दर्शनशात्र को स्वीकार कर लिया है।

गांधीजी अब अतिशक्तिशाली हिंसा की धमकी से घबराए विश्व के पालनहार के रूप में उभर रहे है। यही नहीं, गांधीजी के जीवनकाल में ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्वों ने उनके कार्यों में एक नये विश्व का वादा देखा था। उनमें से एक रोमा रोनाल्ड (1866-1944) ने अपनी पुस्तक 'महात्मा गांधी : दी मैन हू बिकेम वन विथ दी युनिवर्सल बीइंग (1924)` मैं लिखा है। गांधीजी के साथ सभी कुछ प्राकृतिक, सामान्य, शुद्ध, मध्यमार्गी था जबकी उनका सारा संघर्ष धार्मिक निःशब्दता के कारण पवित्र बन गया। गांधीजी की सभ्य धार्मिक प्रकृति उनकी राजनिति में सक्रिय थी। हालांकि इसके दर्शन 15 वर्ष पूर्व जोसेफ जे. डोके द्वारा लिखी उनकी पहली आत्मकथा 'गांधी, ए पेट्रिस्ट इन साउथ अफ्रिका` (1909) गांधी - दक्षिण अफ्रिका में एक देशभक्त में होते है।

यदि आप गांधीजी के राजनैतिक दर्शनशात्र के तत्व को पाना चाहते है तो आपको 1924 में बेलगाम में आयोजित हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में महात्मा गांधीजी के दिए गए अध्यक्षीय भाषण को पढ़ना होगा। गांधीजीने अपने भाषण के अंत में कहा था, "सत्य की खोज में सत्याग्रह है और ईश्वर सत्य है। अहिंसा और सत्याग्रह प्रकाशित पुंजा है जिन्होंने मुझे सत्य से अवगत कराया। स्वराज मेरे लिए उसी सत्य का एक अंश है।

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक आध्यात्मिक व नैतिक आदर्श के रूप में महात्मा गांधी धीमे ही सही पर स्थिरता से उभर रहे है। जर्मनी के महान असित्ववादी दार्शनिक कार्ल जेस्पर्स (1883-1969) ने अपनी कृति 'दी फ्यूचर ऑफ मैंनकाइंड` (1958) डमानवता का भविष्यढ में लिखा है कि आज हम सभी के समक्ष एक पक्ष प्रश्न उभरा है कि कैसे भौतिक शक्ति व युद्ध अस्तित्व को परमाणु बम से नष्ट होने से बचाए। गांधी ने अपने शब्दों व कार्यों से इस प्रश्न का सही उत्तर दिया है। "केवल एक अति राजनैतिक शक्ति ही राजनैतिक मुक्ति ला सकती है।" विश्व अंतःकरण का यही स्वर है और यही गांधी के स्वर की प्रतिध्वनि है। ये स्वर सभीकानों तक तो नहीं पर कुछ कानों तक तो पहुंचा है। यह आश्चर्य की ही बात है कि जर्मनी जैसा राष्ट्र जो दूसरे विश्व युद्ध का उत्तरदायी है वही आधुनिक विश्व में, गांधीवादी अहिंसा की आवश्यकता पर जोर दे रहा है। वास्तव में 1931 के करीब रिने फूलोप मिलर की प्रकाशित कृति 'गांधी : दी होली मैन` (गांधी : धार्मिक पुरुष) के माध्यम से जर्मनी में लोग गांधीजी को समझने लगे थे। इस कृति में लेखक ने कहा कि राजनैतिक समस्याओं का समाधान गांधी के तरीकों से अवश्य किया जा सकता है। गांधी के राष्ट्रवाद में उन तत्वों का समावेश नहीं है जिनसे पश्चिम के राष्ट्रवादी आंदोलनों को शांति प्रक्रिया में बाधक बनाती है।

अब हम गांधी के अहिंसा के प्रति वेर्नर हैसेनबर्ग (आइनस्टाइन के बाद आधुनिक विश्व के महानतम भौतिकशात्री) के रवैये को देखते है। गांधी पर लिखे एक निबंध में उन्होंने कहा है "अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय की अस्पष्ट व्यक्तिगत विचारों की तुलना में गांधी की अहिंसा की शिक्षा ताकतवर सिद्ध होती है। गांधी का विशिष्ट उदाहरण दिखलाता है कि शक्ति की पूरी अस्वीकृति के साथ सच्चा व्यक्तिगत जुड़ाव बहुत सफलतापूर्वक राजनैतिक हो सकता है।"

1969 में नई दिल्ली के मैक्स मूलर भवन के डॉ. हैमाऊ राऊ ने 'महात्मा गांधी एज जर्मन्स सी हिम` (महात्मा गांधी जर्मनों की नज़र से) शीर्षक से एक निबंध-संग्रह का संपादन किया। इसमें गांधीजी के जीवन व उपदेशों पर प्रतिष्ठित जर्मन बुद्धिजीवियों के 16 निबंधों का समावेश है। इन निबंधों के अध्ययन से पता चलता है कि गांधीजी के अहिंसा के दर्शन ने जर्मन विचारों को कैसे प्रभावित किया था। रोनाल्ड जे. टेरचेक की कृति 'गांधी स्ट्रगलिंग फॉर ऑटोनोमी (1999)` स्वायत्तता के लिउ संघर्ष करते गांधीढ के माध्यम से हम जान सकते है कि कैसे गांधी के आदर्श ने एंग्लोसेक्सॉन विश्व की आत्मा को स्पर्श किया। यह कृति हमारी आत्मा के स्वराज की गांधी की कल्पना को समझाती है जो साथ ही हमारे राजनैतिक व सामाजिक दायित्व को पूरा करती है। वारविक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड हार्डिमैन की पुस्तक 'गांधी इन हिज टाइम एंड अवर्स` भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। हार्डिमैन ने गांधी की कल्पनाओं के तत्वों को ग्रहण करते हुए कहा है "गांधी का दृष्टिकोन मन की स्थिति को दर्शाता है न कि किसी नियम को।"

गांधी के आध्यात्मिक व नैतिक दृष्टिकोन हमारी राजनैतिक समस्याओं के लिउ विशेषकर आज के आतंकवाद के विरूद्ध यू. एस. की युद्ध घोषणा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसे समझने के लिए हमें स्वयं पर गांधी की कल्पना के प्रतिबिंब का आकलन करना होगा। देखे की हम क्या है? पेंटागन की मारक शक्ति आतंकवाद को समाप्त नहीं कर सकती है।

यह इसे और अधिक भड़का सकती है। हम सभी आशा कर सकते है कि एक समय इमर्सन, धोरीयू और विटमैन के आदर्शवाद का पालन करनेवाली अमेरीकी जनता जल्द ही गांधी को समझना शुरू कर देगी। यू. एस. को अपने बदले की भावना का त्याग करना ही होगा। वे आज भी उसी नीति के तहत आतंकवादियों के विरूद्ध कारवाई कर रहे है। आप हिंसा का प्रयोग कर शांति नहीं ला सकते है। हिंसा का सबसे प्रभावशाली उत्तर अहिंसा ही है। गांधी ने 'हरिजन` (1938) के एक लेख में लिखा था "यदि एक भी महान राष्ट्र बिना किसी शर्त के त्याग करने का महान कार्य करता है तो निश्चित ही हममें से बहुत अपने जीवनकाल में ही इस पृथ्वी पर शांति को स्थापित होते देख सकेंगे।"

स्त्रोत : द सण्डे स्टेट्समैन, कोलकाता, 8 फरवरी 2004 


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