संस्कारवान, स्वाभिमानी कस्तूरबा गांधी |
विश्वनाथ टंडन विवाह के समय गांधीजी तथा कस्तूरबा (बा) दोनों की उम्र तेरह वर्ष की थी। बा कुछ माह बड़ी थी। एक सभा में जब गांधीजी को सर्वप्रथम माला पहनाई जा रही थी, तो उन्होनें बा को पहले पहनाने को कहा था। तब कहा गया कि आप बड़े हैं तो उनका कहना था। ’नहीं, वह बड़ी है।" यह तो विदित ही है कि प्रारंभ में कन्याओं का विकास बालकों की तुलना में अधिक तीव्र गति से होता है। इसी कारण बा ने गांधी का यह आदेश नहीं माना था कि वगैर उनकी अनुमति के कहीं न जायें। इस संबंध में गांधीजी ने लिखा है : ’कस्तूरबायी ऐसी कैद में रहने वाली थी ही नहीं। जहाँ इच्छा होती, वहीं मुझसे वगैर पूछे चली जाती। मैं ज्यों-ज्यों दबाव डालता वह और भी अधिक स्वतंत्रता से काम लेती और त्यों-त्यों मैं अधिक चिढ़ता।" यह बा के अंदर का स्वाभिमान अंत तक बना रहा। इस संबंध में एक अन्य घटना भी देने योग्य है जो उनकी संस्कारिता की भी परिचायक है। डरबन में वकालत काल में गांधीजी के क्लर्क उनके साथ रहते थे। वे एक अछूत ईसाई थे। उनके पेशाब के पाट को साफ करना बा को बहुत खलता था। इसको करते समय उनकी आंख में आंसू आते थे। यह गांधीजी के लिए असह्य था। एक दिन बा से कह बैठे, ’यह कलह मेरे साथ नहीं चलेगी।" बा को यह बात चुभ गयी और वे कह बैठी ’अपना घर अपने पास रखो। मैं यह चली।" इस पर गांधीजी उनको बाहर ढकेलने लगे। तब बा ने आंसू बहाते कहा : ’तुम्हें तो शर्म नहीं आती, लेकिन मुझे तो है। मैं बाहर निकलकर कहां जा सकती हूँ? यहाँ मेरे माँ-बाप तो हैं नहीं, जिनके पास चली जाऊँ। मैं तुम्हारी पत्नी हूँ इसलिए तुम्हारी फटकार सहनी ही होगी।" इस प्रसंग पर गांधीजी ने लिखा है : ’हमारे बीच झगड़े तो बहुत हुए, पर परिणाम सदा शुभ ही रहा है। पत्नी ने अपनी अद्भुत सहनशक्ति के द्वारा विजय प्राप्त की।" एक माँ का बाप की तुलना में कहीं अधिक संबंध बच्चों और परिवार के लोगों से आता है। अत: उन सबके प्रति पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक स्नेहभावना मिलती है। बच्चों के प्रति यह भावना न हो तो उनका पालन भी कठिन हो जायेगा। इसका उदाहरण भी बा के जीवन में मिलता है। 1896 में जब गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका से भारत वापसी का निर्णय लिया तो उनके भेंट में सोने-चाँदी की अनेक चीजें मिली थी और बा को 50 गिन्नियों का एक हार। गांधीजी किसी चीज को स्वीकारने के पक्ष में नहीं थे और वहां एक ट्रस्ट बनाकर उनको सौंप देना चाहते थे। उसके लिए बा को तैयार करना जरूरी था। बा हार को बच्चों तथा उनकी भावी बहुओं के लिए रख देना चाहतीं थीं। इस पर गांधीजी के यह कहने पर कि लड़कों का विवाह तो होने दो। हमें बचपन में उनको कहाँ ब्याहना है और कहाँ गहनों की शौकिन बहुओं को खरीदना है। इतने पर भी कुछ करना पड़ा, तो मैं कहीं चला जाऊंगा? इस पर बा ने कहा : "मैं जानती हूँ आपको। मेरे गहने भी तो आपने ले ही लिए हैं न। लड़कों को आप बैरागी बना रहे हैं। ये गहने वापस नहीं किये जायेंगे। मेरे हार पर आपका क्या अधिकार है?" इस गाँधीजी के कहने पर कि ’हार तुम्हारी सेवा के उपलक्ष में मिला है या मेरी?" बा ने एक आधुनिक नारीवादी की तरह कहा : "आपकी सेवा मेरी भी सेवा हुई। मुझसे रात-दिन आपने जो मजदूरी करायी वह क्या सेवा में शुमार नहीं होगी? मुझे सताकर भी आपने हर किसी को घर में ठहराया और उसकी चाकरी कराई, उसे क्या कहेंगे?" बा अनपढ़ थी पर बुद्धि बहुत प्रखर थी। उनमें कुनबा परस्ती भी बहुत थी। वह याद रखती थी कि किस त्यौहार पर क्या करना है। उसका एक उदाहरण उस काल का है जब आगा खाँ महल में गाँधीजी के साथ बंद थी। श्रावणी माह का पहला रविवार पड़ा। गुजरात में उस दिन भाई बहन को कुछ देता है। उसके लिए बा ने गांधीजी की बड़ी बहन तथा उनकी पुत्री के लिए सेवाग्राम में रखी साड़ी तथा चोली के लिए लिखवाया था। उस रविवार के निकल जाने के एक माह बाद उत्तर आया कि साड़ियां नहीं मिली। इस पर बा ने अत्यन्त दु:ख भरे स्वर में मनु (गांधी) से कहा : "मैंने दो साड़ियाँ खास तौर पर बुआजी और फूली के लिए रखी थी। बुआजी को इस बार कैसा बुरा लगेगा? अब अच्छी तरह समझकर आश्रम को लिख दे।" दूसरी मिसाल बे माँ की मनु को ही अपनी कन्या के रूप में स्वीकार करना और गांधीजी के सुपुर्द करना था। गांधीजी के साथ प्रारम्भ में उनके मतभेद भले रहे हों, पर समय के साथ वे उनकी महानता स्वीकार करती गयीं थी और एक हिंदू पत्नी का उदाहरण सदैव उनके सामने रहा था। आगा खाँ महल में कब गांधीजी ने सरकार के विरुद्ध अनशन किया था और हालत बहुत बिगड़ने पर, अपनी पूर्व छूट के अनुसार नींबू का थोड़ा रस लेना स्वीकार किया था तो सुशीला बहन बा से बताने गयी तो पाया कि वे तुलसी की पूजा कर रही हैं। उसके ठीक एक वर्ष बाद बा का निधन आगा खाँ महल में ही हुआ था। लगता है कि बा तुलसी से गांधीजी को बचाने की प्रार्थना कर रहीं थीं और उसके बदले में अपना जीवन अर्पण कर रहीं थीं। उनकी चिता पर गांधीजी की आँख में आंसू आये थे और उनका कहना था कि अगले जन्म में यदि विवाह करते हों तो बा को ही पत्नी के रूप में चाहेंगे। बा के निधन के बाद उनकी कुछ चीजें वे अपने साथ सदैव रखते रहे थे। ऐसी थी बा, जिनके पुत्रों का अधिक आदर पिता के लिए भले रहा हो, पर प्यार माँ के लिए अधिक था। स्त्रोत : संस्थाकुल, फरवरी 2009 |