गोलमेज सम्मेलन |
29 अगस्त,
1931 को द्वितीय गोलमेज-सम्मेलन में भाग लेने के लिए गांधीजी ने
'राजपूताना' नामक समुौाh जहाज से इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया। वे भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेसे के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गए थे। अन्य सभी
प्रतिनिधि सरकार द्वारा मनोनीत थे। उनमें से कुछ तो बहुत ही योग्य व्यक्ति
थे, लेकिन अधिकांश राजे-रजवाड़े, जमपदार, उपाधिधारी और निहित स्वार्थ वाले
थे। कुछ तो अपनी हां-में-हां मिलाने वाले प्रतिनिधियों के जमघट और कुछ
सम्मेलन की कार्यविधि पर पूर्ण नियंत्रण के कारण, ब्रिटिश सरकार अपने इस
उद्देश्य में पूरी तरह सफल हुई कि वह सम्मेलन का ध्यान मूल प्रश्नों से हटा
दे और उसे अप्रधान विषयों, विशेष कर साम्प्रदायिक समस्या, में उलझा दे।
गांधीजी मुसलमानों तथा अन्य अल्पसंख्यकों की न्यायसंगत शिकायतों को दूर
करने के लिए "उन्हें कोरा चेक" देने को तैयार थे, बशर्ते कि वे स्वतंत्रता
की राष्ट्रीय मांग पर एक हो जाएं। अधिकांश हिन्दू प्रतिनिधि सद्भावना के
ऐसे प्रदर्शन के लिए तैयार न थे। राष्ट्रवादी मुसलमानों को तो कोई
प्रतिनिधित्व मिला ही न था। |