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			 वर्ष  | 
			
			 महीना  | 
			
			 तारिख  | 
			
			 घटना  | 
		
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			 1869  | 
			
			 अक्तूबर  | 
			
			 02  | 
			
			 मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म एक बनिया (वैश्य) परिवार में गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ। करमचंद उर्फ काबा गांधी उस रियासत के दीवान थे। उनकी चौथी पत्नी पुतलीबाई की वे संतान थे।  | 
		
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			 1876  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 माता-पिता के साथ राजकोट चले गये। जहां उन्होंने बारह वर्ष तक अध्ययन किया। यहां व्यापारी गोकुलदास मकाजी की लड़की कस्तूरबा से उनकी सगाई हुई।  | 
		
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			 1881  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 राजकोट के हाईस्कूल में प्रवेश लिया।  | 
		
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			 1883  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 कस्तूरबा से शादी की।  | 
		
| 
			 1884-85  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 चुपके से मांस खाते थे। माता-पिता को धोखा देने से बचने के लिए एक साल बाद इस बुरी आदत को छोड़ दिया। 63 वर्ष की उम्र में पिताजी की मृत्यु हुई।  | 
		
| 
			 1887  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 दसवीं कक्षा पास कर भावनगर (काठियावाड) के समलदास कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन पहले सत्र में ही पढ़ाई छोड़ दी।  | 
		
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			 1888  | 
			
			 सितंबर  | 
			
			 04  | 
			
			 इंग्लैंड के लिए समुद्री यात्रा  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अक्तूबर  | 
			
			 28  | 
			
			 लंदन पहुंचे। शाकाहारी भोजन ही करते थे। कुछ समय के लिए नृत्य और संगीत सीखा, यह सोचकर कि यह 'जेंटलमस` के लिए आवश्यक है।  | 
		
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			 1889  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 'सादा जीवन` पर आधारित पुस्तकें पढ़ीं। यह निश्चय किया कि वे अब अपना आधा खर्च कम करेंगे। धार्मिक पुस्तकें पढ़ीं। पहली बार उन्होंने गीता पढ़ी, जिसका उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।  | 
		
| 
			 1890  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 शाकाहारी आंदोलनों में भाग लिया। कुछ समय के लिए शाकाहारी क्लब से जुड़े।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जून  | 
			
			 
  | 
			
			 लंदन की मैट्रिक परीक्षा पास की।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 सितंबर  | 
			
			 
  | 
			
			 शाकाहारी समाज से जुड़े।  | 
		
| 
			 1891  | 
			
			 जून  | 
			
			 10  | 
			
			 न्याय सभा में बुलाया गया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 12  | 
			
			 समुद्री मार्ग द्वारा भारत वापस आये।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जुलाई  | 
			
			 
  | 
			
			 बंबई पहुंचे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 नवंबर  | 
			
			 
  | 
			
			 बंबई हाईकोर्ट में प्रवेश के लिए आवेदन किया।  | 
		
| 
			 1892  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 बंबई व राजकोट में वकालत करने लगे, बाद में वे कानूनी ब्यौरा तैयार करने वाले के रूप में कार्य करने लगे।  | 
		
| 
			 1893  | 
			
			 अप्रैल  | 
			
			 
  | 
			
			 दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना। वे एक मुस्लिम फर्म के कानूनी कार्य के लिए बंध गये।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 मई-जून  | 
			
			 
  | 
			
			 रंगभेद का अनुभव हुआ। इसके विरुद्ध संघर्ष करने का निश्चय किया।  | 
		
| 
			 1894  | 
			
			 अगस्त  | 
			
			 22  | 
			
			 नाताल राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 सितंबर  | 
			
			 
  | 
			
			 नाताल के सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश लेने वाले पहले भारतीय बने। बाइबल, कुरान और अन्य धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करते। टालस्टाय की 'द किंगडम ऑफ गॉड इज विथ इन यू` को भी पढ़ा।  | 
		
| 
			 1895  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए संघर्ष। लोगों को एकत्र करने का प्रयास।  | 
		
| 
			 1896  | 
			
			 जुलाई  | 
			
			 
  | 
			
			 भारत वापस आकर दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीयों की समस्याओं को बताया। देश के कोने-कोने में बसे लोगों से समर्थन मांगा।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अगस्त  | 
			
			 14  | 
			
			 राजकोट में उनकी समस्याओं पर आधारित पैम्पलेट छपवाया और लोगों में बांटा। बंबई, पूना, मद्रास, कलकत्ता आदि जगहों की यात्रा कर लोगों को वहां भारतीयों पर हो रहे अत्याचार के बारे में बताया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 नवंबर  | 
			
			 30  | 
			
			 पत्नी व बच्चे के साथ दक्षिण अफ्रीका गये।  | 
		
| 
			 1897  | 
			
			 जनवरी  | 
			
			 13  | 
			
			 डरबन में पहुंचते ही भीड़ द्वारा उन पर पथराव, कारण यह था कि भारत में उनके द्वारा कही गई बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया था। गोरे गुस्से में थे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अप्रैल  | 
			
			 06  | 
			
			 डरबन उतरने पर घटी घटना के संबंध में औपनिवेशिक राज्यमंत्री चैंबरलेन को लंबा आवेदन दिया। स्थानीय और साम्राज्यिक अधिकारियों को याचिका देते रहने के साथ-साथ विभेदक कानूनों के संबंध में अंग्रेज व भारतीयों लोगों से संपर्क करते रहे।  | 
		
| 
			 1898-99  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 लोकेशनों और भारतीयों के व्यापार संबंधी अधिकारों पर लगे प्रतिबंध के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और औपनिवेशिक तथा साम्राज्यिक अधिकारियों के सामने आवेदन पेश।  | 
		
| 
			 1899  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 बोअर युद्ध में घायलों की सेवा के लिए इंडियन अंबुलेस दस्ता बनाकर सेवा की। उनकी इस सेवा के लिए उन्हें मेडल मिला।  | 
		
| 
			 1901  | 
			
			 अक्तूबर  | 
			
			 18  | 
			
			 समुद्री मार्ग से भारत वापसी।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 14  | 
			
			 पोरबंदर के रास्ते राजकोट पहुँचे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 27  | 
			
			 दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों की समस्या से कांग्रेस को परिचित कराया।  | 
		
| 
			 1902  | 
			
			 जनवरी  | 
			
			 28  | 
			
			 रंगून की यात्रा पर गये।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 फरवरी  | 
			
			 01  | 
			
			 गोखले जी के साथ एक महीने कलकत्ता में बिताया। राजकोट वापस लौटकर वकालत करने लगे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जुलाई  | 
			
			 
  | 
			
			 बंबई आकर वकालत करने लगे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 नवंबर  | 
			
			 
  | 
			
			 दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों द्वारा बुलावा। जोसेफ चैम्बरलेन अपने कुछ कानूनों को लागू करने के लिए अफ्रीका आ रहा था। गांधीजी को भारतीयों का प्रतिनिधित्व करना था।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 
  | 
			
			 डरबन पहुँचे। भारतीयों की समस्याएं लेकर चैम्बरलेन से मिले।  | 
		
| 
			 1903  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 ट्रंसवाल के सुप्रीम कोर्ट में ऍटार्नी के रूप में प्रवेश लिया। ट्रंसवाल ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन की स्थापना। दादाभाई नौरोजी को वहां की स्थिति के बारे में लिखा।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जून  | 
			
			 
  | 
			
			 इंडियन ओपिनियन कामंसेस का प्रकाशन।  | 
		
| 
			 1904  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 रस्किन की पुस्तक 'अन टू द लास्ट` का अध्ययन। नाताल (डरबन) के पास फीनिक्स कॉलोनी में लोगों की सेवा कर अपना योगदान दिया। जोहान्सबर्ग में आये प्लेग के समय अस्पताल में रोगियों की सेवा।  | 
		
| 
			 1905  | 
			
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 बंगाल विभाजन का विरोध। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का समर्थन किया, जब गोखले और लाजपतराय ब्रिटेन की यात्रा पर गये थे। तब उपनिवेशवादी राजनेताओं से भारत को 'साम्राज्य का अभिन्न अंग` मानने तथा सम्मानजनक दर्जा देने की अपील की।  | 
		
| 
			 1906  | 
			
			 मई  | 
			
			 12  | 
			
			 'होम रोल` का समर्थन भारत के लिए किया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 27  | 
			
			 अपने भाई लक्ष्मीदास को पत्र लिखकर सांसारिक सुख-सुविधाओं और मोह-माया में अरुचि बताई।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जून-जुलाई  | 
			
			 
  | 
			
			 जुलू युद्ध से मन में उपजे द्वंद्व के कारण उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 सितंबर  | 
			
			 11  | 
			
			 ट्रंसवाल के काले कानून के विरोध में जोहान्सबर्ग में भारतीयों की विशाल सभा को संबोधित किया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अक्तूबर-नवंबर  | 
			
			 30  | 
			
			 इंग्लैंड में भारतीयों की ओर से कॉलोनी सेक्रेटरी को ज्ञापन दिया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 18  | 
			
			 दक्षिण अफ्रीका वापस लौटे।  | 
		
| 
			 1907  | 
			
			 जनवरी-मार्च  | 
			
			 
  | 
			
			 
			
			गुजराती भाषा
			में 
			'धार्मिक
			शात्र` के 
			8 लेख ट्रंसवाल संसदीय समिति ने 'एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट` पास कर दिया। भारतीयों की सभाएं होने लगीं।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अप्रैल  | 
			
			 
  | 
			
			 प्रिटोरिया में जनरल स्मटस् से मिलकर इस काले कानून के खिलाफ अपना विरोध प्रकट किया। भारतीयों ने इस कानून के खिलाफ लड़ने का फैसला किया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अगस्त  | 
			
			 
  | 
			
			 इस काले कानून की आलोचना करते हुए स्मटस् को पत्र लिखा। साथ ही उसमें बदलाव करने के लिए सुझाव भी दिये।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 
  | 
			
			 स्मटस् ने गांधीजी पर मुकदमा चलाने का निश्चय किया।  | 
		
| 
			 1908  | 
			
			 जनवरी  | 
			
			 08  | 
			
			 सरकार से कहा कि वह अपने रजिस्ट्रेशन कानून को रद्द करे, स्वयं भारतीय रजिस्ट्रेशन कराएंगे यह भी सुझाव दिया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 10  | 
			
			 'निक्रिय प्रतिरोध` के स्थान पर 'सत्याग्रह` शब्द चुना। गांधीजी ने 'सत्याग्रह` आरंभ किया। उन्हें गिरफ्तार कर दो महीने के लिए जेल में डाला गया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 21  | 
			
			 'स्वैच्छिक पंजीकरण` का समझौता हुआ।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 30  | 
			
			 समझौता होने के बाद गांधीजी को रिहा कर दिया गया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 फरवरी  | 
			
			 10  | 
			
			 एक पठान द्वारा इस समझौते से क्रोधित होकर गांधीजी की हत्या की कोशिश की। उसे गिरफ्तार कर गांधीजी के सामने पेश किया। गांधीजी ने उसे छोड़ देने के लिए कहा। वे उस पर कार्रवाई नहीं करना चाहते थे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 मार्च-जून  | 
			
			 
  | 
			
			 जनरल स्मटस् को पत्र लिखकर एक बार फिर उनसे उनका वादा पूरा करने की बात कही। स्मटस् ने अधिनियम रद्द करने से इंकार कर दिया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जुलाई  | 
			
			 
  | 
			
			 भारतीयों की जगह-जगह सभाएं हुईं। लोगों ने अपना विरोध प्रकट करते हुए रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट की होलियां जलाईं।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अगस्त  | 
			
			 
  | 
			
			 भारतीयों से कहा कि वे अहिंसा के मार्ग पर चलकर ब्रिटिश राज्य को उखाड़ फेंकें। जनरल स्मटस् से 'ब्लैक एक्ट` को रद्द करने की अपील की। विभिन्न सभाओं में लोग इकट्ठा होकर रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट जलाते।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अक्तूबर  | 
			
			 15  | 
			
			 गिरफ्तार करके एक बार फिर कठोर कारावास की दो महीने की सजा मिली।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 12  | 
			
			 जेल से रिहा हुए। इंडियन नेशनल कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार की इस कार्रवाई की निंदा की।  | 
		
| 
			 1909  | 
			
			 जनवरी  | 
			
			 16  | 
			
			 वॉल्कसरस्ट में रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट पेश न करने के कारण गिरफ्तार, बाद में जमानत पर छूट गये।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 20  | 
			
			 अंतिम संघर्ष के लिए भारतीयों को एकजुट होकर तैयार रहने को कहा।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 फरवरी  | 
			
			 25  | 
			
			 एक बार फिर वहीं गिरफ्तार किये गये। इस बार 3 महीने के लिए कैद में भेजा गया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 मई  | 
			
			 02  | 
			
			 प्रिटोरिया सेंट्रल जेल में स्थानांतरित किया गया।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 24  | 
			
			 रिहा कर दिये गये।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जून  | 
			
			 21  | 
			
			 इंग्लैंड में एक भारतीय केस की सुनवाई के लिए हाजी हबीब के साथ इंग्लैंड के लिए रवाना।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जुलाई  | 
			
			 10  | 
			
			 लंदन पहुँचे। यहां लार्ड अंपथिल की सहायता से ब्रिटिश राजनेताओं और जन-समुदाय को भारत के मामले की सही जानकारी देने तथा साम्राज्यिक अधिकारियों के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करने का कार्य करते रहे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 नवंबर  | 
			
			 09  | 
			
			 'द टाइम्स` में ट्रंसवाल कानूनों पर गांधीजी और सरकार के बीच ''समझौता वार्ता`` असफल होने का समाचार प्रकाशित।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 10  | 
			
			 टॉलस्टॉय के पत्र का उत्तर दिया। अपनी जीवनी डोक के हाथों भेजी।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 13  | 
			
			 इंग्लैंड छोड़कर दक्षिण अफ्रीका के लिए प्रस्थान।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 30  | 
			
			 दक्षिण अफ्रीका पहुँचे।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 29  | 
			
			 लाहौर कांग्रेस समिति की बैठक में गांधीजी के संघर्ष की सराहना करते हुए 'अनुबंध की प्रथा पर रोक` लगाने की मांग का संकल्प पारित हुआ।  | 
		
| 
			 1910  | 
			
			 अप्रैल  | 
			
			 04  | 
			
			 टॉलस्टाय को 'होम रूल` की प्रति भेजकर सम्मति देने का अनुरोध।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 मई  | 
			
			 08  | 
			
			 टॉलस्टाय ने जवाब दिया कि, 'निक्रिय प्रतिरोध` का प्रश्न न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व की संपूर्ण मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण है।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 
  | 
			
			 30  | 
			
			 'टॉलस्टाय फर्म` की नींव रखी।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 04  | 
			
			 टॉलस्टाय को श्रद्धांजलि अर्पित की।  | 
		
| 
			 1911  | 
			
			 जनवरी  | 
			
			 
  | 
			
			 स्मटस् के साथ भेंट की। अप्रवासी प्रतिबंध विधेयक में संशोधनों के संबंध में स्मटस् के साथ लिखा पढ़ी। स्मटस् ने आश्वासन दिया कि कानून में रंग-भेद का दोष नहीं रहेगा।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 मार्च  | 
			
			 27  | 
			
			 केपटाउन में स्मटस् से मुलाकात की।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 अप्रैल  | 
			
			 22  | 
			
			 निक्रिय प्रतिरोध आंदोलन को निलंबित करने पर, स्मटस् भारतीयों द्वारा मांगे गये आश्वासन देने के लिए राजी हुआ।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 मई  | 
			
			 03  | 
			
			 स्मटस् द्वारा एशियाई पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) तथा अप्रवासी प्रतिबंध अधिनियम को रद्द करने का वचन देने पर एक 'अस्थायी समझौता` हुआ।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 जून  | 
			
			 24  | 
			
			 राज्याभिषेक के अवसर पर सम्राट के प्रति निष्ठा व्यक्त की।  | 
		
| 
			 
  | 
			
			 दिसंबर  | 
			
			 06  | 
			
			 गोखले जी को दक्षिण अफ्रीका में आने का निमंत्रण भेजा।  |