जरा सोचो |
सत्य का पुजारी अहिंसा का उपासक अब तक- गहरी नींद में सो चुका है। स्वतंत्रता संग्राम का वह महान सेनानी कंटककीर्ण मार्ग को- मुसकराते हुए पारकर अब हमसे बहूत दूर हो चुका है। उसकी याद में हमने कितनी इमारतों को कितने रास्तों को कितने बाग़ बग़ीचों को- और न जाने किस किस को- उसका नाम दे दिया है पर ज़रा सोचें- हम उनके पद चिन्हों पर कितना चले हैं ? उनके कितने आदर्शों को अपने जीवन में हम ढ़ाल चुके हैं ? ? ? - अजीत आनन्द |