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जरा सोचो

सत्य का पुजारी

अहिंसा का उपासक

अब तक-

गहरी नींद में

सो चुका है।

स्वतंत्रता संग्राम का

वह महान सेनानी

कंटककीर्ण मार्ग को-

मुसकराते हुए पारकर

अब हमसे

बहूत दूर

हो चुका है।

उसकी याद में हमने

कितनी इमारतों को

कितने रास्तों को

कितने बाग़ बग़ीचों को-

और न जाने

किस किस को-

उसका नाम

दे दिया है

पर ज़रा सोचें-

हम

उनके पद चिन्हों पर

कितना चले हैं ?

उनके कितने आदर्शों को

अपने जीवन में

हम

ढ़ाल चुके हैं ? ? ?

- अजीत आनन्द

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