मुकुलभाई कलार्थी
58. ‘मैं होती तो फर्क पड़ता’ |
हरिजनों के सवाल पर बापू ने 1932 में यरवडा जेल में आमरण अनशन प्रारम्भ किया था । उस समय बा साबरमती जेल में थीं । वे बापू के पास न थी, इस कारण बा का मन विचलित रहता था । अपने पति की जिंदगी दाँव पर लगी देख बा के मन में बडी़ उछल-पुथल रहती । एक बार इसी बात पर अपनी तड़प व्यक्त करते हुए वे जेल की अन्य बहनों से कहने लगीः ‘यह ‘भागवत’ पढ़ रही हूँ, ‘रामायण’, ‘महाभारत’ पढ़ती हूँ । इनमें कहीं ऐसे उपवास की बात नहीं है । परन्तु बापू की तो, बात ही अलग है । ये ऐसे ही करते रहते हैं, अब क्या होगा ?’ बहनें उन्हें धीरज बंधाते हुए कहने लगीः ‘बा, बापू को सरकार सभी सुविधाएँ देगी, आप चिंता क्यों करती हैं ?’ तब बा बोली, ‘बापू कोई सुविधा लें तब ना ! उनका तो हर मामले में असहयोग ! इनके जैसा आदमी तो मैंने कहीं नहीं सुना । पुराणों की बहुत सी बातें सुनीं पर ऐसा तप कहीं नहीं दिखा ।’ कुछ रुककर बा फिर कहने लगीं, ‘यद्यपि कुछ हर्ज नहीं है। यों महादेव हैं, वल्लभभाई हैं, सरोजिनी देवी हैं पर मैं होती तो फर्क पड़ता ।’ |