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लल्लुभाई म. पटेल

 

6. ‘घी का दिपक’

उस दिन सेवाग्राम में नित्य-संध्याप्रार्थना के पश्चात् बापू प्रवचन करनेवाले थे । गाँधी जंयती का दिन होने के कारण आस-पास के गाँवों के लोग भी प्रार्थना में उपस्तिथ थे । गाँधीजी के बैठने के लिए एक ऊँचा स्थान बनाया गया था । आसपास कोई श्रृंगार या सजावट नहीं थी । सफेद खादी की गद्दी से बैठक सुशोभित थी । थोडी़ दूरी पर एक घी का दिया जल रहा था ।

गाँधीजी वहाँ आये । उनका ध्यान उस दीपक की ओर गया । उन्होंने आँखें बंद कीं, प्रार्थना शुरू हो गयी ।

प्रार्थना के पश्चात, प्रवचन करने से पहले बापू ने प्रश्न किया – ‘यह दीपक कौन लाया ?’

बा बोली, ‘इसे मैं लायी हूँ ।’

गाँधीजी ने पूछा, ‘कहाँ से मँगवाया ?’

बा ने कहा – ‘गाँव से !’

क्षणभर गाँधीजी बा की ओर देखते रहे । दीपक जला के अपने पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए प्रभु से प्रार्थना करना हिंदु स्त्री का धर्म है यह मानकर कस्तूरबा ने यह दीपक मँगवाकर जलाया था । पर बापू ने यह प्रश्न क्यों पूछा, बा समझ न सकीं ।

फिर गाँधीजी बोलेः आज यदि सबसे खराब कुछ हुआ है तो यह कि बा ने दीया मँगवाकर घी का दीपक जलाया है । आज मेरा जन्मदिन है, क्या इसीलिए घी का दीया जलाया गया है ? मेरे आस-पास के गाँवों रहनेवालों का जीवन मैं रोज देखता हूँ । उन्हें रोटी में चुपड़ने के लिए तेल की दो बूँद तक नहीं मिलतीं और मेरे आश्रम में आज घी जल रहा है । मेरा जन्मदिन है तो क्या हुआ ? आज के दिन सत्कर्म करना चाहिए, पाप नहीं । गरीब किसान को जो चीज नहीं मिलती, उसका इस प्रकार दुरुपयोग हमसे कैसे किया जाए ?