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55. अहिंसा का पाठ |
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सन् 1937-38 की बात है । कई प्रान्तों में कांग्रेस की सरकारें थी । बंगाल में फजलुल हक का मंत्रिमण्डल था । कांग्रेस-सरकार ने राजनैतिक कैदियों को मुक्त कर दिया । परन्तु बंगाल के राजनैतिक बंदियों का क्या होगा ? महात्माजी सारे राष्ट्र के पिता थे । वे चुप थोडे़ ही रहनेवाले थे । वे कलकत्ता गये । बंगाल के गवर्नर और मुख्यमन्त्री फजलुल हक से मिले । गांधीजी से कहा गया कि यदि वे राजनैतिक कैदी हिंसा का त्याग करेंगे, तो उन्हें छोडा़ जायगा । गांधीजी जेल में जाकर कैदियों से मिले और उन्हें हिंसा की व्यर्थता समझाने लगे । उन दिनों गांधीजी को रक्तचाप की तकलीफ थी । फिर भी वे राजबन्दियों की मुक्ति के लिए प्रयत्न कर रहे थे । गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने लिखाः “गांधीजी पर भरोसा करो। उनकी बात मानो ।” वह देखो, गांधीजी जेल से चर्चा करके बाहर आ रहे हैं । दोनों हाथों से सिर दबाये आ रहे हैं । क्या रक्तचाप बढ़ गया ? राष्ट्रपिता के ऐसे संस्मरण याद आते ही आँखों में कृतज्ञता के आँसू छलछता आते हैं ।
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