| | |

खण्ड 2 :
राष्ट्रपिता

24. बच्चे और बापू

बापू को छोटे बच्चों से बडा़ प्यार था । और बच्चों को भी बापू से विशेप प्रेम था । सेवाग्राम में बापूजी के नाती रहते थे । वे बापू को खूब तंग करते थे ।

एक नन्हा नाती डेढ़ वर्ष का था । वह गांधीजी के आगे खडा़ रहता और लगातार ‘बापूजी’-‘बापूजी’ चिल्लाया करता । गांधीजी न ध्यान देते, न जवाब । आसपास के सारे लोग विनोद देखकर हँसने लगते ।

गांधीजी सन् 1944 में जेल से छूटकर शान्तिनिकेतन गये थे । जवाहरलालजी की पुत्री इंदिरा वहीं थी । राजीव उसका छोटा पु्त्र था । गांधीजी को देखते ही राजीव बोल पडाः ‘जय हिन्द, बापू !’’ बापू का दिल प्यार से भर आया और बोलेः ‘जय हिन्द, राजीव !”

एक बार सेवाग्राम में गांधीजी घूमने निकले । घूमते समय भी मुलाकातें होती थीं । चर्चा थी कि गांधीजी दिल्ली जानेवाले हैं । साथ में जो नाती था, उसने पूछाः “बापूजी, आप दिल्ली जानेवाले हैं, है न ?”

“हाँ बेटे ।’’

“किसलिए जायेंगे ?”

“वाइसराय से मिलने ।’’

“हमेशा आप ही उनसे मिलने जाते हैं । वाइसराय आपसे मिलने क्यों नहीं आते ?”

यह प्रश्न सुनकर सब हँस पडे़ । बापूजी ने उस नाती की पीठ पर प्यार से मुक्का जमा दिया ।

बापूजी तब पंचगनी में थे । दादर के मोतीवाले लागू अपने बच्चे के साथ तब पंचागनी थे । एक बार गांधीजी घूमने निकले । लागूजी का बच्चा भी साथ था । गांधीजी की छडी़ उसने हाथ में ली । एक सिरा उसके हाथ मे, दूसरा गांधीजी के हाथ में । बच्चा भागने लगा । बापू भी भागने लगे । उस वक्त का चित्र अजर-अमर है । उस चित्र के नीचे यह लिखा हुआ तुमने देखा होगाः “नेता को ले चलनेवाला बालक’’।

गांधीजी जुहू में थे। सन् 1944 के बाद की बात है । प्रार्थना जुहू में होती थी । बम्बई से हजारों लोग प्रार्थना में जाते थे । एक दिन एक लड़का दादर से पैदल चला। फल-फूल लेकर जुहू पहुँचा। बापूजी से मिला । उनके चरणों में फूल चढा़ये, फल सामने रखे । राष्ट्रपिता ने उसे पास में बिठाया, उसे आशीर्वाद दिया । बापूजी का परम मंगल हाथ पीठ सहलाये, इससे अधिक महान् भाग्य क्या हो सकता है !