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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

15. लेने के बदले दो

मीराबहन इन दिनों हिमालय की तलहटी पर एक गाँव में गोशाला चला रही हैं । गाय-बैलों के मल-मूत्र का कृषि के लिए व्यवस्थित उपयोग करती हैं । जल-सेना के अधिकारी की वह पुत्री हैं । भारतीय जनता की सेवा में जीवन समर्पित करने के निश्चय से वह भारत आयीं और महात्माजी के जीवन-दर्शन को निःसीम उपासिका बनीं । साधक वृति को महिला हैं । स्वामी विवेकानन्द की जैसे भगिनी निवेदिता, वैसे महात्मा गांधी की मीराबहन ।

सेवाग्राम आने के बाद मीराबहन भिक्षुणी की तरह व्रती बन गयीं । आसपास की पंचकोशी में दवा लेकर घूमती थीं । सेवा उनका धर्म बन गया । मीराबहन अच्छी पढी़-लिखी हैं । फ्रेंच अच्छा जानती हैं । महादेवभाई (गांधीजी के सचिव) को फ्रेंच सीखाने की इच्छा हुई । थोडा़ समय निकालकर मीराबहन के पास वे फ्रेंच सीखने लगे । आगे चलकर यह बात गांधीजी को मालूम हुई । एक दिन बापू और महादेवभाई बात कर रहे थे, तब महात्माजी ने पूछाः

“महादेव, मैंने सुना कि तुम आजकल फ्रेंच सीख रहे हो ? कौन सिखाता है ?”

“मीराबहन सिखाती हैं ।’’

“सीखने के लिए तुमने समय कहाँ से निकाला ? मेरे काम में ढिलाई करते होगे ? और देखो, मीराबहन स्वदेश और स्वगृह छोड़कर इस देश में आयी हैं । उसे तुम हिन्दी सिखाओ । उसके पास से कुछ लेने के बजाय, उसे कुछ नया दो । ठीक है न ?”

‘‘हाँ, बापू-महादेवभाई ने कहा ।