गांधीजी : एक वैश्विक कार्यकर्ता |
अग्निवा बनर्जी इटली के राजनैतिक दल के ध्वज पर गांधीजी का चित्र क्यों है और महात्मा फ़िलिस्तीन की दीवार पर क्या कर रहे हैं - बता रही हैं अग्निवा बनर्जी। सत्याग्रह की शताब्दी के अवसर पर जहां एक ओर गांधीजी का चित्र मिट्टी से सनी और जीवाणुओं की भरमार के नीचे भारतीय मुद्रा पर बड़ी शान से चमक रहा है, वहीं दूसरी ओर उनका चित्र यूरोप के कई देशों सहित फ़िलिस्तीन, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका की मुद्राओं पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। रैडिकली इटालियानी नाम का राजनैतिक दल अभी कुछ दिनों पहले तक सत्ता में रही साझा सरकार का सहयोगी दल था, लेकिन देश की वर्तमान अस्थिर परिस्थितियों ने इस साझा सरकार का खात्मा कर दिया। इसी राजनैतिक संगठन के ध्वज पर विराजमान हैं-गांधीजी का चित्र! रैडिकली इटालियानी की 59 वर्षीय कुंआरी महिला नेता एमा बॉनिनो पिछली साझा सरकार में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और यूरोपीयन मामलों की मंत्री थीं और इससे पहले वे यूरोपीयन कमिश्नर के ओहदे पर भी कार्य कर चुकी हैं। बॉनिनो पिछले 30 बरसों से गांधीवाद की प्रबल समर्थक हैं और गांधीवाद के साथ ही जीवन-निर्वाह करने का भरसक प्रयत्न करती हैं। 'इटली में गांधी का नाम बहुत ही जाना-पहचाना है, “बॉनिनो कहती हैं। 'हमारी पाठ्यपुस्तकों में उनके बारे विस्तृत जानकारी दी गई है और हम उन्हें बहुत ही गंभीरता से लेते हैं।“ एक ओर जहां बीसवीं सदी के सभी महान राजनैतिक धुंदर विश्वपटल से गायब होते जा रहे हैं या यूं कहें कि उनका पदार्थीकरण हो रहा है या फिर वे संन्यास ले चुके हैं; तो दूसरी ओर गांधीजी की राजनीतिक विरासत अक्षुण्ण बनी हुई है, देश में भी और देश से दूर अन्य देशों में भी। जेरुश्लेम और रामल्ला के बीच स्थित एक गांव में इस्राईली सरकार द्वारा बनाई गई फ़िलिस्तीन को अलग करनेवाली दीवार पर गांधीजी का एक विशाल चित्र उकेरा गया है। गांधीजी की मूर्तियां तो न्यूयॉर्क, लंदन और पीटरमारित्ज़बर्ग में बड़ी शान से खड़ी हैं। इसी जनवरी के आखिरी सप्ताह में सत्याग्रह की सौवीं वर्षगांठ के अवसर पर नयी दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में तो डेसमंड तुतु, केनेथ कौंडा और अहमद कैथ्रादा जैसे शांतिवादी नेताओं ने उन्हें जैसे जीवित ही कर दिया। 'यूरोप में हम गांधी-साहित्य में उल्लेखित रहस्यवादी तत्त्वों को हमारे लिए प्रासंगिक तो बिल्कुल नहीं समझते, लेकिन हम उनकी राजनीतिक प्रणाली का अनुसरण ज़रूर करते हैं। हम सत्याग्रह पर पूरा विश्वास रखते हैं।'' कहती हैं बॉनिनो, जो पिछले दिनों इटली के एक व्यापारिक प्रतिनिधि मंडल के साथ मुंबई आयी थीं। "हमारे लिए तो गांधीजी एक राजनैतिक नेता पहले हैं।'' ``िक्रयाशील अहिंसा-पैन-यूरोपीयन गठबंधन- ट्रंसनेशनल रैडिकल पार्टी का धर्मसार है और बॉनिनो इसी पार्टी से संबंध रखती हैं। पिछले बीस बरसों से गांधीजी का चित्र रैडिकली इटालियानी पार्टी के ध्वज की शोभा बढ़ा रहा है। इसके सदस्य अक्सर भूख और प्यास हड़ताल पर चले जाते हैं, और इनका मुख्य राजनैतिक आंदोलन सविनय अवज्ञा के साथ ही चलता है। अमेरिका में, मार्च 2003 में इराक पर होनेवाले हमलों के दौरान विश्वविद्यालयों के गलियारों में लगे पोस्टरों पर लिखा था - 'गांधीजी क्या करेंगे?“ और जब यह घोषणा हुई कि जॉर्ज बुश भारत की यात्रा के दौरान गांधीजी की समाधि पर फूलों का चक्र अर्पित करेंगे तो अमेरिका के युद्ध-विरोधी बुद्धिजीवियों ने इसे एक तरह का सनकीपन करार दिया और इस घटना को बहुत ही अपमानजनक और प्रतीकात्मक बताया। तीन साल पहले जब हिलरी क्लिंटन ने अपने सीनेट चुनाव के प्रचार के दौरान मज़ाक में कहा कि गांधीजी सेंट लुई में गैस स्टेशन चलाया करते थे, तो लोगों का इस कथन के प्रति विरोध इतना ज़बरदस्त था कि उन्हें फ़ौरन माफ़ी मांगनी पड़ी और कहना पड़ा, " जी नहीं, मैंने वह यूं ही कहा था; दरअसल महात्मा गांधी तो बीसवीं शताब्दी के एक महान नेता थे।'' इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने पराजित प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए गांधीजी द्वारा कहा गया कथन दोहराया -"पहले तो वे तुम्हें उपेक्षित करेंगे, फिर तुम पर हंसेंगे, उसके बाद वे तुमसे लड़ेंगे-झगड़ेंगे और तब कहीं जाकर तुम विजयी होगे।'' फ़िलिस्तीन में इस्रराईल द्वारा किये जानेवाले क्षेत्रीय अतिक्रमण के ख़िलाफ़ गांधीजी एक नये राजनीतिक विकल्प बनकर उभर रहे हैं। हिंसा से कुछ पाने के बजाय बहुत कुछ खोने का अहसास होने के बाद गैरराजनीतिक संगठनों के एक नेटवर्क ने गांधी प्रोजेक्ट नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके माध्यम से इस आंदोलन को जारी रखने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह के लाभों का प्रचार करना ही उनका उद्देश्य है। फ़िलिस्तीन में गांधीजी का बहुत महत्त्व है, उनके प्रति एक विशेष आकर्षण है वहां। जहां एक ओर गांधीजी हिटलर द्वार यहूदियों पर किये गये अत्याचारों के घोर विरोधी रहे और उन यहूदियों के कष्टों के प्रति दुखी होते रहे, वहीं दूसरी वे मध्य एशिया में यहूदियों के लिए विशेष क्षेत्र बनाने के समर्थन में कभी आगे नहीं आये, और इस्राईल के निर्माण का विरोध करते रहे। गांधी प्रोजेक्ट के तहत गांधीजी के दर्शन को बढ़ावा देने के लिए यह संगठन रिचर्ड एटनबरॉ की फिल्म गांधी को अरबी में डब करवा कर गांवों, शरणार्थी शिविरों और फ़िलिस्तीन के अन्य भागों में दिखाया जा रहा है। अब तक बेथलहेम, जेरुश्लम, रामल्ला, हेब्रॉन, नेब्लस, कलांदिया चेकपॉइन्ट पर स्थित दोनों भागों को विभाजित करनेवाली दीवार और अन्य भागों में इस फिल्म के सैकड़ों प्रदर्शन हो चुके हैं। बॉनिनो गांधीजी की विरासत के प्रति बहुत ही आशावादी हैं। वे कहती हैं - "यूरोप को देखो। सिर्फ पिछले 50 बरसों से ही तो हम शांति से रह रहे हैं। वरना रक्तरंजित और लंबे अरसों तक चलनेवाले विध्वंसकारी युद्ध हमारे महाद्वीप का इतिहास रहे हैं। हममें से कुछ लोगों ने शांति को बरकरार रखने के लिए बहुत मेहनत-मशक्कत की है।'' |