पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा |
लाहौर अधिवेशन बड़ा महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। गांधीजी की प्रेरणा से कांग्रेस महासमिति ने जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष चुना। नयी आशा और शक्ति से भरे कांग्रेस संगठन को कर्णधार के रूप में एक युवक की आवश्यकता थी। चालीस वर्षीय जवाहर लाल, जिन्हें गांधीजी ने ``स्फटिक जैसा निर्मल... एकदम खरा और विीवसनीय...निडर और साहसी सूरमा`` बताया था, समय पाकर गांधीजी के सच्चे राजनैतिक उत्तराधिकारी बने। दोनों व्यक्तियों में अगाध स्नेह था, यद्यपि उनकी उम्र में बीस साल का अन्तर था और दोनों की बौद्धिक पृष्ठभूमि बिल्कुल भि़ थी। कलकत्ता-कांग्रेस ने सरकार को जो एक साल का समय दिया था, वह खत्म हो चुका था। औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव, जो नेहरू रिपोर्ट में दी गयी न्यूनतम राष्ट्रीय मांग थी, स्वीकार नहप किया गया और वह कालातीत हो गया। 31 दिसम्बर, 1929 की आधी रात को, जैसे ही नया वर्ष शुरू हुआ, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रावी नदी के तट पर पूर्ण स्वतंत्रता का झण्डा फहराया। कांग्रेसगअधिवेशन ने केन्ौाhय और प्रान्तीय विधानमण्डलों के अपने सदस्यों को इस्तीफा देने का आदेश दिया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ करने का अधिकार भी दे दिया गया। जनवरी 1930 में गांधीजी ने लिखा था कि मैं आन्दोलन शुरू करने के बारे में ``रात-दिन प्रचण्ड रूप से विचारमग्न रहता हूं।`` 26 जनवरी को स्वाधीनता-दिवस मनाने का आदेश देकर, उन्होंने आन्दोलन की दिशा में पहला कदम उठाया। उस दिन देश के नगर-नगर में और गांव-गांव में लाखों लोगों ने स्वाधीनता की प्रतिज्ञा में कहा कि ``ब्रिटिश शासन में रहना मानव और भगवान दोनों के प्रति अपराध है।`` स्वाधीनता-दिवस के समारोहों में जब जनता की उमंग उभर कर सामने आई तो गांधीजी बहुत उत्साहित हुए। उन्हें विीवास हो गया कि देश जनगआन्दोलन के लिए तैयार है। उन्होंने नमक-कानून तोड़ कर आन्दोलन शुरू करने का प्रस्ताव रखा।
आने वाली घटनाओं ने दिखा दिया कि नमक और स्वराज्य के पारस्परिक सम्बन्ध को ठीक से न समझ सकने के कारण जिन लोगों ने नमक-सत्याग्रह का उपहास किया था, उन्हें भारतीय जनता को सामूहिक आन्दोलन के लिए संगठित करने की गांधीजी की कुशलता का सही ज्ञान नहप था। गांधीजी 5 मई को गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के ठीक पहले उन्होंने अहिंसात्मक विौाsह की दूसरी और पहले से अधिक उग्र योजना बनाई थी। यह थी, धरसाना के सरकारी नमकगडिपो पर धावा बोलना और उस पर कब्जा करना। गांधीजी की गिरफ्तारी के एक पखवाड़े के बाद 2500 स्वयंसेवकों ने यह हमला किया। उनके कूच करने से पहले कवयित्री सरोजिनी नायडू ने प्रार्थना कराई और गांधीजी की शिक्षा पर –ढ़ता से अमल करने और अहिंसा पर –ढ़ रहने का आग्रह किया। डिपो के चारों तरफ कांटेदार तार लगा दिए गए थे और खाई खोद दी गई थी। जैसे ही स्वयंसेवकों का पहला जत्था आगे बढ़ा, पुलिस अधिकारियों ने उन्हें दूर हट जाने की आज्ञा दी। स्वयंसेवक चुपचाप आगे बढ़े। पुलिस के सैकड़ों जवान उन पर टूट पड़े और डंडे बरसाने लगे। अमरीकी संवाददाता बैब मिलर ने उस नृशंस लाठीचार्ज का आंखों देखा वर्णन इस तरह किया थाः ``अठारह वर्ष़ों से मैं दुनिया के बाइस देशों में संवाददाता का काम कर चुका हूं, लेकिन जैसा हृदय-विदारक –श्य मैंने धरसाना में देखा, वैसा और कहप देखने को नहप मिला। कभीगकभी तो –श्य इतना लोमहर्षक और दर्दनाक हो जाता कि मैं देख भी नहप पाता और मुझे कुछ क्षणों के लिए आंखें बन्द कर लेनी पड़ती थप। स्वयंसेवकों का अनुशासन कमाल का था। गांधीजी की अहिंसा को उन्होंने रोम-रोम में बसा लिया था।``
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