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कश्मीर में पाकिस्तानी अतिक्रमण के बावजूद गांधी ने भारत सरकार को बाध्य किया कि वह पाकिस्तान को बकाया 55 करोड रुपए दे।

संपत्ति एवं दायित्वों के बँटवारे की शर्त़ों के मुताबिक भारत को 55 करोड रुपए की दूसरी किश्त चुकानी थी। कुल 75 करोड रुपए पाकिस्तान को दिया जाना था जिसकी एक किश्त के रूप में 20 करोड रुपए उसे पहले ही दिये जा चुके थे। पाकिस्तानी सेना के परोक्ष समर्थन से कश्मीर में उग्र हुए स्वाधीनता संग्रामियों ने यह हरकत दूसरी किश्त दिये जाने के पहले ही शुरू कर दी थी। तब भारत सरकार ने दूसरी किश्त रोकने का निर्णय लिया और लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे परस्पर समझौते का उल्लंघन माना था। उन्होंने अपने विचारों से महात्मा गांधी को अवगत भी करा दिया था। गांधी की नजर में `जैसे को तैसा` की नीति अनुचित थी और हालांकि वायसराय के नजरिए से वे सहमत थे कि समझौते का उल्लंघन हुआ है। इसका मिश्रण उन्होंने अपने शुरू किये अनशन में दिखा। उन्होंने उपवास दिल्ली में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए किया था। गांधी सितंबर 1947 में कलकत्ता से दिल्ली आए थे और शांति स्थापना के लिए पंजाब जाने वाले थे। जब सरदार पटेल ने दिल्ली की विस्फोटक स्थिति की जानकारी उन्हें दी तो उन्होंने अपनी आगे की यात्रा रद्द कर दी और दिल्ली में शांति बनाए रखने के कारण `करो या मरो` के दृढ़संकल्प के साथ दिल्ली में रुकने का निश्चय कर लिया।

पाकिस्तान से भागकर दिल्ली आए हिंदुओं - जिन्होंने अपने संबंधियों की हत्याएँ देखीं, उन्हें लापता पाया, जिनकी औरतों के साथ बलात्कार हुआ और जिनकी संपत्तियाँ छिनी गइऔ थीं - उन्होंने विस्फोटक स्थितियाँ बना दी थप। स्थानीय हिंदू अपने शहर में आए हिंदुओं के प्रति पाकिस्तान में हुए बर्ताव से व्यथित थे तो मुस्लिमों में अतिरंजना जिससे दिल्ली बिस्फोट के मुहाने पर पहुँच गई थी। इससे हत्याएँ, बलात्कार/छेडखानी, घरों एवं संपत्तियों की लूट बढ गई जिससे गांधी रोष से भर उठे। इसका सबसे दर्दनाक पहलू यह था कि यह सब उस भारत भूमि पर घटित हो रहा था जिसने अहिंसा के जरिए विदेशी साम्राज्यवाद को समाप्त कर दिया था। इसी वैचारिक पृष्ठभूमि में उन्होंने दिल्ली में सांप्रदायिक सद्भाव एवं शांति के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसी दौरान भारत सरकार ने पाकिस्तान को बकाया 55 करोड रुपए देने का फैसला लिया। इस घालमेल में गांधी आलोचना के पात्र बन गए।

ये तथ्य बताते हैं कि गांधी ने उपवास, भारत सरकार पर नैतिक दबाव बनाने के लिए शुरू नहीं किया था।

डॉ. सुशीला नायर ने जब गांधी का निर्णय सुना तो वह भागकर अपने भाई प्यारेलाल के पास पहुँची और उन्हें सूचित किया कि गांधी ने दिल्ली के लोगों का पागलपन जब तक खत्मे नहीं होता तब तक उपवास करने का फैसला लिया है। उन विपरित परिस्थितियों में भी पाकिस्तान को 55 करोड रुपए दिये जाने की बात न होना यह बताता है कि गांधी की उपवास का मकसद दिल्ली में शांति की स्थापना कराना था, न कि पाकिस्तान को पैसा दिलाना।

गांधी ने 12 जनवरी 1947 को प्रार्थना सभा में इसका कोई उल्लेख नहीं किया। अगर पाकिस्तान को पैसा दिलाना उपवास की शर्त होती तो वे जरूर उसका उल्लेख करते।

13 जनवरी को प्रवचन में भी उन्होंने इसकी कोई चर्चा नहीं की।

15 जनवरी को, उनके उपवास से संबंधित एक विशेष प्रश्न के उत्तर में भी उन्होंने इसका उल्लेख नहीं किया था।

भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में इसका कोई उल्लेख नहीं है।

गांधी पर उपवास त्यागने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा दिये गए आश्वासन में भी इस बात की चर्चा नहीं है।

हमें आशा है कि इन तथ्यों से गांधी के उपवास से पाकिस्तान को दिये गए 55 करोड रुपए का जोडा गया विवाद यहप समाप्त हो जाएगा ।


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