
चित्र -1 |
गांधी
को
देश
के
नेताओं
ने
अपने-अपने
ढंग
से
टटोला-अबु
की
यह
कृति
आज
भी
अपनी
प्रासंगिकता
बनाए
हुई
है।

चित्र -2 |
|
वर्मा
ने
गांधी
को
मिक्की
माऊस
के
रूप
में
औंका।

चित्र -3
|
.......तो
कुट्टी
ने
गांधी
की
सादगी
को
व्यंग्य
चित्र
में
उठाया।

चित्र -4
|
|
अहमद
ने
स्वतंत्रता-प्राप्ति
के
पश्चात्
गांधीजी
के
अकेलेपन
की
पीड़ा
को
बेहद
संजीदगी
के
साथ
चित्रित
किया।

चित्र -5
|
केशव
शंकर
ने
गांधी
को
चिंतनीय
मुदा
में
प्रस्तुति
किया।

चित्र -6
|
|
गांधीजी
के
संबंध
में
विदेशी
राजनयिकें
के
साथ
किस
तरह
से
रहे।
इसका
चित्रण
हमारे
भारतीय
व्यंग्य
चित्रकारों
ने
बखूबी
किया।
लार्ड
लिनलिथिगो
तथा
गांधीजी
को
शतरंज
खेलते
हुए
दिखाया
गया
है।
प्रसिध्द
व्यंग्य
चित्कार
वासु
ने
अपने
इस
चित्र
में
बताया
कि
गांधीजी
की
चतुराई
चाल
से
लार्ड
लिनलिथिगो
किस
प्रकार
भौंचक्के
रह
गए
हैं।

चित्र -7
|
ऐसे
ही
कुछ
और
चालाकी
भरे
दाँव-पेंच
क्रिप्स
तथा
अन्य
वायसरायों
के
साथ
खेलते
रहे-शंकर
के
कुछ
व्यंग्य
चित्र
द्रष्टव्य।

चित्र – 8
|

चित्र
- 9
|
|
व्यंग्य चित्र अखबार
की आत्मा होती है
(हालाँकि आज के इस व्यावसायिक युग में विज्ञापनी को अखबार का प्राणदायिनी कहा जा
रहा है, जा कि काफी हद तक सत्य भी है ) मझे स्मरण है कि आज से तिरेपन वर्ष पूर्व 29
जून, 1950 को जब `नवभारत टाइम्स ` का प्रवेशांक का प्रकाशन हुआ तब पत्र के मुख्य
पृष्ठ पर डॉ. के कदम का एक व्यंग्य चित्र छापा था, जिसमें बापू के कदम को कदम ने
सत्य के बढ़ते कदम के रूप में चित्रंाकित किया था।

चित्र
– 10
|
|
इसी
अखबार
के
मुखपृष्ठ
पर
एक
और
व्यंग्य
छपा
था,
जिसमें
भी
गांधी
को
रेखांकित
किया
गया
था।

चित्र – 11
|
|
गांधीजी
की
सादगी
ने
व्यंग्य
चित्रकारों
को
सर्वाधिक
प्रभावित
किया।
चंद
रेखाओं
में
किसी
के
व्यक्तित्व
एवं
हाव-भाव
को
प्रदर्शित
करना
इतना
आसान
नहीं
है,
पर
व्यंग्य
चित्रकारों
ने
सतत
अभ्यास
के
बल
पर
ऐसा
कर
दिखाया।
एक
बानगी-

चित्र – 12
|
|
जैसा
कि
पूर्व
में
हमने
बताया
कि
आजादी
के
बाद
भारत
की
दुर्दशा,
वर्तमान
व्यवस्था
में
प्राप्त
भ्रष्टाचार,
स्मगलिंग,
हड़ताल
जैसी
गतिविधियों
को
देखकर
गांधीजी
का
हृदय
व्यथित
हो
उठा-यह
सब
देखकर
गांधजी
कह
उठे-
क्या
इन्हीं
सबके
लिए
मैं
जिया-मरा?
अक्तूबर 1974
के
अंक
में
`शंकर्स
वीकली`
के
मुखपृष्ठ
पर
प्रकाशित
यह
व्यंग्य
चित्र।

चित्र - 13
|
स्वर्ग में बैठे भारत की वर्तमान
दशा
को निहार रहे हेंगे,
तो
क्या
सोच
रहे
होंगे
वे।
जिस
देश
में
शांति
के
लिए
उन्होंने
अपना
सर्वस्व
त्याग
दिया,
आज
वहीं
परमाणु
बम,
मिसाइलें,
आतंकवाद
की
प्रच्छया
फैली
हुई
है।
डॉ.
सतीश
के
इस
व्यंग्य
चित्र
में
इसका
स्पष्ट
मूल्यांकन
हुआ
है।

चित्र – 14
|
|
ऐसी
दुदर्शा
देखकर
बापू
के
मुख
से
हे
राम!
हे
राम!
तो
उच्चारित
होता
ही
था।

चित्र – 15 |
एस.वी.
मूर्ति ने भी कुछ ऐसा
ही मनोभाव चित्रित किया।

चित्र – 16 |
|
अजीत नैनन ने भी गांधी को
वर्तमान
स्थिति से दुःखी बतलाया।

चित्र
-17 |
इन
सबके
पीछे
कानून
और
न्याय
को
जिम्मेदार
ठहराया
गया
है।
कानून
और
न्याय
की
अवहेलना
देख
बापू
ने
शर्म
से
अपनी
गरदन
झुका
ली।
उदयन
का
यह
चित्र
बड़े
सुंदर
ढंग
से
न्याय
प्रणाली
पर
सटीक,
किंतु
तीखा
प्रहार
करता
है।

चित्र
– 18 |
|
इसी
कारण
गांधीवादी
के
मायने
बदलते
चले
गए।
आर.के.लक्ष्मण
की
नजर।

चित्र – 19
|
2
अक्तुबर,
2000
को
उन्नी
ने
गांधी
के
प्रति
नेता
के
माध्यम
से
अपनी
भावभिव्यक्ति
दी।

चित्र - 20
|
|
सुरेश
सावंत
ने
भारत
छोड़ो
मिशन
को
वर्तमान
संदर्भ
में
उसका
मूल्यांकन
करते
बसपा
द्वारा
बापू
को
ही
इंगित
करते
हुए
यह
बात
कही।

चित्र – 21
|
शनैः-शनैः
लोग
गांधी
को
भूलते
जा
रहे
हे।
आम
आदमी
की
छोडिए,
नेतागण
तक
को
याद
नहीं
रहता
कि
2
अकतूबर
को
गांधीली
की
जन्मतिथि
है।
पांडुंग
राव
ने
इस
प्रवृत्ति
पर
करारा
व्यंग्य
किया।

चित्र – 22
|
|
बापू
का
हे
राम
आज
किस-किस
राम को संदर्भित कर रहा है-यह
बता
रहे
हैं
सुरेश
सावंतजी।

चित्र – 23
|
सत्य
और
अहिंसा
के
पुजारी
पर
लहरी
की
दृष्टि।

चित्र – 24
|
|
अंतत
गांधी
को
अपना
प्रतिमा
स्थल
छ़ेडकर
भागना
पड़
गया।
रंजीत
के.के.डे
का
यह
व्यंग्य
चित्र,
जिसे
हिंदुस्तान
टाइम्स
प्रतियोगिता
में
पुरस्कार
मिला।

चित्र – 25
|
जिस
गांधी
ने
पूरे
देश
को
सुरक्षा
प्रदान
की
थी
आज
उसे
सुरक्षा
की
आवश्यकता
पड़
रही
है।
प्रसिध्द
कार्टूनिस्ट
काक
का
नजरिया।

चित्र – 26
|
|
गांधीजी
की
आड़
में
नेताओं
की
मनमानी,
स्वार्थपरकता
किस
धड़ल्ले
से
चल
रही
है-इसे
बताया
कुट्टी
ने।

चित्र – 27
|
एक
गांधी
स्टाइल
राबेल
की
तरफ
से
भी।

चित्र – 28
|
|
गांधी
के
कदमों
पर
आज
कोई
भी
नहीं
चलना
चाह
रहा।
नेता
तो
एकदम
छिटक
जाते
हैं।
गांधीजी
नेता
से
कहते-आओं
मेरे
साथ
चलो!
तो
आज
का
नेता
हड़बड़ा
जाता।
कहता-कौन
मैं?
(कब्बी
नहीं
)
कुछ
ऐसी
ही
भावभिव्यक्ति
अबु
के
इस
व्यंग्य
चित्र
में
दिखी
है।

चित्र - 29
|
गांधी
के
पद-चिह्नों
पर
कितने
पर
कितने
लोग
चलना
चाहते
हैं
या
चल
रहे
हैं?
इसका
विश्लेषण
कर
रहे
हैं।

चित्र – 30
|
|
बापू
अब
सिवाय
टप-टप
आँसू
बहाने
के
और
क्या
कर
सकते
है।
विख्यात
कार्टूनिस्ट
बाल
ठाकरे
का
यह
चित्रंाकन।

चित्र
– 32 |
इन
सारी
गति
गतिविधियों
को
प्रत्यक्ष
देखकर
या
अखबारों
में
पढ़कर
गांधीजी
क्या
सोचते
होंगे?
इसकी
परिकल्पना
लक्ष्मण
के
व्यंग्य
में
उभरकर
आई
है।

चित्र – 31
|
|
हांडा
ने
भी
करीब-करीब
कुछ
ऐसा
ही
चित्रण
किया।
देश
की
दुर्दशा
को
दिवंगत
नेता,
सांसद
और
गांधीजी
यह
देखकर
भौंचक्के
रह
गए
हैं।

चित्र – 33
|
बापू
ने
जिस
स्वराज
की
परिकल्पना की थी,
वह सब ध्वस्त हो गई।

चित्र – 34
|
|
आर.के.
लक्ष्मण
का
यह
व्यंग्य
चित्र।

चित्र – 35
|
आर.के.
लक्ष्मण
की
कुछ
और
कृतियाँ (चित्र
36
से
39)
।

चित्र – 36
|
|

वित्र – 37
|

वित्र – 38
|
|

चित्र – 39
|
मुजूनाथ
ने
गांधी
की
सादगी,
सच्चाई
तथा
अहिंसा,
जिसके
बल
पर
वे
चले,
को
चित्रित
करने
का
प्रयास
किया
है।

चित्र – 40
|
|
दक्षिण
भारतीय
व्यंग्य
चित्रकारों
की
चंद
बानगी-

चित्र – 41
|

चित्र
– 42 |
|

चित्र – 43 |

चित्र – 44 |